प्रस्तावना
राजघाट स्थित गांधी दर्शन तथा 5, तीस जनवरी मार्ग स्थित गांधी स्मृति को मिलाकर सितम्बर, 1984 में एक स्वायत्त निकाय के रूप में गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति का गठन हुआ था जो भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के रचनात्मक परामर्श एवं वित्तीय समर्थन के साथ कार्य कर रही है। भारत के प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष हैं तथा इसकी गतिविधियों का मार्ग निर्देशन करने के लिए वरिष्ठ गांधीवादियों और विभिन्न सरकारी विभागों के प्रतिनिधियों की एक नामित समिति है। समिति का मुख्य उद्देश्य विविध प्रकार के सामाजिक, शैक्षिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से महात्मा गांधी के कार्यों एवं विचारों का प्रचार करना है।
5, तीस जनवरी मार्ग, नई दिल्ली पर पुराने बिड़ला हाऊस में स्थित गांधी स्मृति वह पावन स्थान है जहां 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की इहलोक लीला समाप्त हुई। इस भवन में महात्मा गांधी 9 सितम्बर, 1947 से 30 जनवरी, 1948 तक रहे थे। इस प्रकार यह भवन महात्मा गांधी के जीवन की अनेक स्मृतियां संजोए हुए है। भारत सरकार ने 1947 में पुराने बिड़ला हाऊस को अधिग्रहीत किया और इसे राष्ट्रपिता के राष्ट्रीय स्मारक के रूप में परिवर्तित कर दिया गया तथा 15 अगस्त, 1973 को इसे जनता के लिए खोल दिया गया।
यहां संरक्षित वस्तुओं में वह कक्ष है जहां गांधीजी रहे थे और वह प्रार्थना मैदान जहां गांधीजी की जनसभा आयोजित की जाती थी तथा जहां पर गांधीजी को गोलियों का शिकार बनया गया। भवन तथा यहां का परिदृश्य वैसे ही आरक्षित है जैसे उस समय था।
संग्रहालय में संरक्षित हैं-
(क) महात्मा गांधी की स्मृति एवं उनके द्वारा अपनाए गए पवित्र आदर्शों को प्रचारित करने वाले दृश्यात्मक पहलू।
(ख) गांधी को एक महात्मा बनाने वाले उनके जीवन के मूल्यों पर गहन रूप से केन्द्रित शैक्षणिक पहलू।
(ग) कुछ अनुभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उनकी गतिविधियों को प्रस्तुत करने के लिए उनकी सेवा के पहलू।
संग्रहालय में यहां पर बिताए गए गांधीजी के दिनों के फोटोग्राफ, मूर्तियां, पेटिंग, भित्तिचित्र, शिलालेख तथा स्मृति चिह्न संग्रहित हैं। गांधीजी की कुछ वैयक्तिक वस्तुएं भी यहां पर सावधानी से संरक्षित हैं।
यहां का प्रवेश द्वार ही ऐतिहासिक महत्व का है क्योंकि इसके ऊपर से ही प्रधानमंत्री जवाहरलाल ने महात्मा गांधी महाप्रयाण की घोषणा करते हुए कहा था, 'हमारे जीवन का प्रकाश चला गया और अब चारों ओर अंधेरा है।'
गांधी स्मृति के प्रवेश द्वार पर गोलाकार भूमण्डल से उभरती हुई आदमकद से बड़ी महात्मा गांधी की एक प्रतिमा, जिसके बगल में और हाथों में कबूतर पकड़े हुए एक ओर एक लड़का और दूसरी ओर एक लड़की की मूर्ति है जो गरीबों एवं विपन्न लोगों की उनकी सार्वभौमिक चिंता को प्रकट करती है, अभ्यागतों का स्वागत करती है। यह विख्यात मूर्तिकार श्री राम सुतार की कृति है। प्रस्तरमूर्ति की आधारशिला पर 'मेरा जीवन ही मेरा संदेश है' अंकित है।
राष्ट्रपिता को जिस स्थान पर गोलियों का निशाना बनाया गया था वहां पर एक बलिदान शिलाखण्ड स्थापित है जो भारत के लम्बे स्वाधीनता संग्रामी की सभी पीड़ाओं और बलिदानों का प्रतीक है। इस शिलाखण्ड के चारों ओर परिक्रमा करने के लिए पत्थरों का एक मार्ग बनाया हुआ है। शिलाखण्ड के सामने श्रद्धालुओं द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए स्थान छोड़ा गया है। शिलाखण्ड के नीचे के घास के मैदान में गुरुदेव टैगोर के शब्द हैं, 'वह प्रत्येक कुटिया की देहलीज पर रूके।'
प्रार्थना प्रांगण के मध्य में एक मण्डप है जिसकी दीवारों पर भित्तिचित्र है जो भारत की सांस्कृतिक यात्रा की निरंतरता, विश्वभर में इसके विचारों के आदान-प्रदान को प्रतिबिम्बित करते हैं और महात्मा गांधी के विश्वव्यापी व्यक्त्तित्व को अभिव्यक्त करते हैं। इन भित्तिचित्रों में उनकी विनम्रता का भी प्रतिपादन हुआ है। वह कहते थे, 'मेरी वैयक्तिक आवश्यकताओं के लिए मेरा गांव ही मेरा संसार है परंतु मेरी आध्यात्मिक आवश्यकताओं के लिए समूचा संसार मेरा गांव है।'
मण्डप के बाहर लाल रंग के पत्थर से बनी एक बेंच है जिस पर बैठकर महात्मा गांधी प्रार्थना करते थे या कठिनाई के दिनों में शांति प्रदान के लिए उनके पास आने वाले लोगों के साथ वह वार्तालाप करते थे।
हरी भरी घास प्रार्थना मैदान की विशेषता है जिसमें चारों ओर सफेद गुलाब के पौधे हैं। दाएं ओर के मैदान पर स्मारक के प्रवेश द्वार के निकट 'गांधी के सपनों का भारत' अंकित है। घुमावदार मार्ग के केंद्र में विख्यात कलाकार शंखो चौधुरी की कास्यं की एक कृति है जो गांधीजी के बलिदान पर प्रज्ज्वलित शाश्वत अग्निशिखा की प्रतीक है।
बिड़ला भवन में गांधीजी का कक्ष वैसे ही रखा गया है जैसा उनके निधन के समय था। उनकी सभी वस्तुएं, उनका , उनकी छडी, एक चाकू, कांटा और चम्मच, साबुन के स्थान पर प्रयोग किया जाने वाला खरहरा सुरक्षित है। उनका बिस्तरा था धरती पर एक चटाई, सादा सफेद ढलान लकड़ी की एक डेस्क बगल में है। वहां पर एक पुरानी काफी दिनों से पढ़ी जा रही गीता की पुस्तक भी है।
यह पूरा भवन कई भागों में विभाजित है। भवन के मुख्य प्रवेश के दोनों ओर महात्मा गांधी द्वारा रचित एक प्रार्थना 'एक सेवक की प्रार्थना' तथा उनका शाश्वत संदेश, उनके 'जंतर' प्रदर्शित हैं। बगल के एक कमरे में 'बा' और 'बापू' की दो प्रतिमाएं रखी हैं। फाइबर ग्लास से बनी प्रतिमाएं थाईलैण्ड के एक युगल श्री डेका सैसम्बून और श्रीमती सैसम्बून की बनाई हुई है।
मोहनदास करमचंद गांधी से महात्मा गांधी का बनना दक्षिण खण्ड में विवरण सहित 35 पैनलों पर श्वते-श्याम चित्रों में प्रदर्शित है। दक्षिण खण्ड में एक सभागार तथा समिति कक्ष भी है।
उत्तरी खण्ड में पांच विभिन्न कक्ष हैं। प्रथम खण्ड में वह वीथिका है जो उस कक्ष की ओर ले जाती है जहां पर गांधीजी ने अपनी शांति यात्रा और बलिदान को समर्पित जीवन के अंतिम 144 दिन बिताए थे।
उत्तरी खण्ड का तीसरा भाग 'गांधी के सपनों के भारत' तथा आनेवाली पीढि़यों द्वारा इस स्वप्न को साकार करने का गांधीजी का फार्मूला प्रदर्शित है। वह था अट्ठारह सूत्रीय कार्यक्रम। गांधीजी भारत को संसार के समक्ष वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ एक विकसित माडल के रूप में प्रदर्शित करना चाहते थे।
चौथे खण्ड सुमन में कुल 27 उपखण्ड हैं। इनमें से तीन विभितीय पटलों पर महात्मा गांधी के बाल्यकाल से लेकर उनके प्राणात्सर्ग तक के जीवन की 27 महत्वपूर्ण घटनाएं प्रदर्शित की गई हैं।
पांचवे खण्ड सन्मति में जो गांधी स्मृति का साहित्य केंद्र है, गांधीवाद तथा इससे संबंधित अनेक पुस्तकें एक स्थान पर उपलब्ध पूरा मण्डप अब एक चहलकदमी करते हुए देखने वाली वीथिका है, जो हमारे समाज के सभी अंगों और संसार के सभी भागों के कलाकारों को एक अवसर प्रदान करती है, जहां वे अपनी कृतियां प्रदर्शित कर सकते हैं और वहां आने वाले विशाल जनसमुदाय तक अपनी भावनाएं पहुंचा सकते हैं। बच्चों तथा कमजोर वर्ग के कलाकारों को विशेष अवसर प्रदान किया जाता है तथा अपनी कलाकृतियों को प्रदर्शित करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है।
गांधी स्मृति में 'स्वराज' खादी, कुटीर उद्योग तथा ग्रामीण विकास पर गांधीवादी विचारधारा को अभिव्यक्त करता है।
यहां पर एक 'स्मृतिचिह्न' पटल है जहां गांधीजी विषयक प्रतिमाएं तथा संगत कलाकृतियां प्रदर्शित हैं।
प्रख्यात सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खां द्वारा उद्घाटित 'कीर्ति मण्डप' नव-उद्घाटित मण्डप, जो गांधी स्मृति में बलिदान शिलाखण्ड के निकट स्थित है, किसी बड़े कार्यक्रम के लिए 500 जन प्रतिनिधियों के लिए स्थान उपलब्ध कराता है। प्रत्येक शुक्रवार को इस मण्डप में नियमित रूप से प्रार्थना की जाती है।
समाज के विपन्न वर्गों के बच्चों को कम्प्यूटर, सिलाई और कढ़ाई, बालकों की देखभाल और शिक्षा, सामुदायिक स्वास्थ्य, कुम्हारी, कताई और बुनाई, कठपुतली प्रदर्शन, स्वांग, संगीत तथा कहानी सुनाने आदि में कौशल प्रदान करने के प्रयास के लिए 'सृजन' नामक 'गांधी स्मृति शैक्षणिक केंद्र' की स्थापना की गई है। 'सृजन' व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को सीखने में बच्चों की सहायता करता है ताकि उनमें स्व-सहायता की भावना और आत्मविश्वास उत्पन्न हो सके और जीवनयापन में समर्थ हो सकें। इनमें से कुछ पाठ्यक्रमों को राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय द्वारा मान्यता प्रदान कर दी गई है।
हाल ही में संग्रहालय में 'शाश्वत गांधी' शीर्षक की मल्टी-मीडिया प्रदर्शनी आरम्भ की गई है, जो भवन के समूचे तल पर है। गांधी के जीवन और उनके दृष्टिकोण को साकार रूप से प्रस्तुत करने के लिए इसमें अधुनातन इलेक्ट्रानिक हार्डवेयर तथा नवीन मीडिया का उपयोग किया गया है। इसमें ऐतिहासिकता तथा व्याख्यात्मकता दोनों को प्रमुखता दी गई है। इक्कीसवीं सदी की प्रौद्योगिकी का प्रयोग करती हुई यह प्रदर्शनी गांधीवादी विचारों को उद्घाटित करती है जो उस सत्याग्रही का सत्य के सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता को स्थापित करती है।
इन सभी वस्तुओं के साथ गांधी स्मृति एक समग्र संग्रहालय का स्वरूप धारण करती है।
दूसरा परिसर राजघाट पर महात्मा गांधी की समाधि के निकट स्थित है। छत्तीस एकड़ का यह विस्तृत परिसर महात्मा गांधी की शताब्दी के अवसर पर 1969 में अस्तित्व में आया। इस अवसर पर एक अंतरराष्ट्रीय गांधी दर्शन प्रदर्शनी आरम्भ की गई। परिसर भर में फैले छह विशाल मण्डपों में विभाजित यह केंद्र महात्मा के शाश्वत संदेश 'मेरा जीवन ही मेरा संदेश' को साकार करता है।
महात्मा गांधी के बलिदान के 31 वर्ष पश्चात् संसार ने 1969 में शताब्दी को शांति की यात्रा के रूप में मनाने का निर्णय किया। 'अंतरराष्ट्रीय गांधी दर्शन प्रर्दशनी' की स्थापना में 13 भारतीय राज्यों और 7 अन्य देशों ने सहयोग किया और अत्यंत सौम्य स्वरूप में गांधीवादी दर्शन को प्रस्तुत किया। इस प्रदर्शनी का मुख्य उद्देश्य आधुनिक विश्व और राष्ट्र के जीवन प्रमाणित करने की पृष्ठभूमि में गांधी के संदेश और सत्य अहिंसा के सिद्धांत की व्याख्या करना है।
गांधी दर्शन संग्रहालय मं सक्षिप्त विवरण के साथ दीवारों पर पुरातात्विक महत्व के सैंकड़ों चित्र प्रदर्शित हैं। गांधीजी के बाल्यकाल और युवावस्था के कुछ चित्र दुर्लभ हैं। यहां पर उस घर का एक माडल भी है जिसमें गांधीजी का जन्म हुआ था। वह सेना का वाहन संरक्षित है, जिसमें गांधीजी का पार्थिव शरीर अंतिम संस्कार के लिए राजघाट ले जाया गया था।
इनके अतिरिक्त यहां आनेवाले व्यक्ति गांधीजी के विद्यालय के रिपोर्ट कार्ड तथा तत्कालीन परिवेश में उनकी गतिविधियों विषयक समाचारों एवं काटूनों वाली समाचार पत्रों की कतरनें तथा गांधीजी और लियो टालस्टाय के बीच पत्राचार, उनकी पत्नी और माता-पिता के पोर्टेट तथा अन्य विविध आकर्षक सामग्री देख सकते हैं। एक में गांधीजी की हत्या के पश्चात् के वर्षों में विश्व के अनेक देशों द्वारा जारी किए गए डाक टिकट प्रदर्शित हैं तथा दूसरे में उनको भेजे गए पत्र प्रदर्शित हैं। इनसे पता चलता है कि उस सहज से गुजराती वकील को संसार में कितनी मान्यता प्राप्त थी। उदाहरण के लिए एक पत्र है, 'गांधीजी जहां कहीं भी वह हों' न्यूयार्क से भेजे गए एक पत्र के लिफाफे पर गांधीजी का स्केच है।
इसके संस्थापकों की धारणा थीं कि कालान्तर में गांधी दर्शन शिक्षा का एक अंतरराष्ट्रीय केंद्र बन जाएगा। 1994 में यह सपना साकार हुआ जब गांधीजी की 125वीं जयंती के अवसर पर इस परिसर को अंतरराष्ट्रीय गांधी अध्ययन एवं शांति अनुसंधान केंद्र का स्वरूप दे दिया गया। यह भारत तथा अन्य देशों के शोध कर्ताओं को मार्गदर्शन उपलब्ध कराता है। गांधी तथा संबंधित विषयों पर यह केंद्र एक स्थान पर महत्वपूर्ण सामग्री उपलब्ध करवाता है।
संस्थागत सुविधाएं-
अंतरराष्ट्रीय गांधी अध्ययन एवं शांति अनुसंधान केंद्र में उपलब्ध सुविधाएं-
1. एक पुस्तकालय एवं प्रलेखन केंद्र, जिसमें गांधीजी रचित तथा उनके विषय में 15,000 से अधिक पुस्तकें उपलब्ध हैं। यहां लगभग 50 पत्र-पत्रिकाएं मंगाई जाती हैं।
2. सभी सुविधाओं युक्त सम्मेलन, संगोष्ठी और व्याख्यान कक्ष।
3. अंतरराष्ट्रीय छात्रावास जो 25 व्यक्तियों के रहने के लिए पर्याप्त है।
5. प्रकाशन प्रभाग। पुस्तकों के अतिरिक्त यहां एक पत्रिका, एक समाचार पत्रिका तथा बच्चों का समाचार पत्र भी प्रकाशित होता है।
6. फोटो एकक।
7. प्रमुख राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय बैठकों के लिए आवासीय सुविधा।
8. संपर्क कार्यक्रमों के लिए उन्मुक्त प्रांगण।
गतिविधियां, एक दृष्टि में-
अपने तीन दशक से अधिक के अस्तित्व में, इक्कीसवीं सदी की कल्पना के साथ कदम मिलाते हुए समिति लोगों के लिए अनेक गतिविधियों तथा कार्यक्रमों की योजना बनाती रहती है जिनमें बच्चों, युवाओं और महिलाओं पर विशेष बल दिया जाता है।
उनमें से प्रमुख हैं गांधी को विद्यालयों तक ले जाना, युवा शिविर, पंचायती राज में प्रशिक्षण, वार्ता और सम्मेलन, महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम, सांप्रदायिक सदभाव के लिए प्रयास, गांधीजी के भजनों और गीतों का गायन, नियमित चरखा कताई कक्षाएं, गांधी स्वाधीनता संग्राम और राष्ट्रीय नेताओं पर फिल्में दिखलाना, संस्मरणात्मक कार्यक्रम, गांधी स्मृति व्याख्यान, शैक्षणिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों के साथ शैक्षिक कार्यक्रम।
हाल के वर्षों में समिति के कार्यों को प्रकृति का राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय आयाम मिला है। कार्यक्रम अधिक समस्या आधारित हो गये हैं और महत्वपूर्ण सामयिक समस्याओं की प्रेरणा ले रहे हैं। समिति का विस्तार भारत के विभिन्न भागों, खासकर पूर्वोत्तर, चम्पारण, पश्चिम बंगाल, जम्मू और कश्मीर में हुआ है। प्रयास यह है कि नवीनतम प्रक्रियाओं का प्रयोग करते हुए गांधीजी द्वारा कल्पित समग्र विकास के लक्ष्य की ओर आज के युवाओं को प्रेरित किया जाए।
नए उद्यमों की विशेषताओं में प्रमुख हैं विद्यालयों तथा महाविद्यालयों एवं बाहरी युवाओं, स्वयंसेवकों तथा प्रशिक्षणार्थियों को समिति के साथ जोड़ा जाए।वे अब समिति के अभिन्न अंग हैं। राष्ट्रीय इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के सहयोग से गांधीवादी विचारों पर प्रमाणपत्र तथा डिग्री पाठ्यक्रम आरम्भ किए गए हैं और सृजन के तहत कुछ व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय द्वारा मान्यता प्राप्त हो गई है।
समिति की संरचना -
शासी निकाय :
अध्यक्ष -
डॉ. मनमोहनसिंह, भारत के प्रधानमंत्री
उपाध्यक्ष-
श्रीमती तारा गांधी भट्टाचार्य
सदस्य-
श्रीमती अम्बिका सोनी , केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मत्री, संस्कृति मंत्रालय
श्रीमती आरती मेहरा, दिल्ली के महापौर
श्री तेजेन्द्र खन्ना, दिल्ली के उपराज्यपाल
श्री बी.आर. नंदा
सुश्री सुमित्रा कुलकर्णी
कुमारी निर्मला देशपांडे
श्रीमती बिमला शर्मा
श्री प्रेमचंद भाई
श्रीमती राज्यश्री बिड़ला
श्री अनिल नौरीया
आयुक्त, दिल्ली नगर निगम
अध्यक्ष/प्रशासक, नई दिल्ली न.प.
सचिव, संस्कृति मंत्रालय
सचिव, शहरी विकास मंत्रालय
सचिव (व्यय्, वित्त मंत्रालय
प्रधानमंत्री के सूचना सलाहकार
अपर महानिदेशक, के.लो.से.वि.
सदस्य सचिव-
श्री आर.सी मिश्रा, संयुक्त सचिव, संस्कृति मंत्रालय
कार्यकारी समिति :
अध्यक्ष-
श्रीमती तारा गांधी भट्टाचार्य
सदस्य-
कुमारी निर्मला देशपांडे
महानिदेशक, के.लो.से.वि.
अनिल नौरीया
सदस्य सचिव-
श्री आर.सी मिश्रा, संयुक्त सचिव, संस्कृति मंत्रालय
निदेशक-
डॉ. सविता सिंह
(क) गांधी स्मृति
5, तीस जनवरी मार्ग, नई दिल्ली पर पुराने बिड़ला हाऊस में स्थित गांधी स्मृति वह पावन स्थान है जहां 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की इहलोक लीला समाप्त हुई। इस भवन में महात्मा गांधी 9 सितम्बर, 1947 से 30 जनवरी, 1948 तक रहे थे। इस प्रकार यह भवन महात्मा गांधी के जीवन की अनेक स्मृतियां संजोए हुए है। भारत सरकार ने 1947 में पुराने बिड़ला हाऊस को अधिग्रहीत किया और इसे राष्ट्रपिता के राष्ट्रीय स्मारक के रूप में परिवर्तित कर दिया गया तथा 15 अगस्त, 1973 को इसे जनता के लिए खोल दिया गया।
यहां संरक्षित वस्तुओं में वह कक्ष है जहां गांधीजी रहे थे और वह प्रार्थना मैदान जहां गांधीजी की जनसभा आयोजित की जाती थी तथा जहां पर गांधीजी को गोलियों का शिकार बनया गया। भवन तथा यहां का परिदृश्य वैसे ही आरक्षित है जैसे उस समय था।
संग्रहालय में संरक्षित हैं-
(क) महात्मा गांधी की स्मृति एवं उनके द्वारा अपनाए गए पवित्र आदर्शों को प्रचारित करने वाले दृश्यात्मक पहलू।
(ख) गांधी को एक महात्मा बनाने वाले उनके जीवन के मूल्यों पर गहन रूप से केन्द्रित शैक्षणिक पहलू।
(ग) कुछ अनुभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उनकी गतिविधियों को प्रस्तुत करने के लिए उनकी सेवा के पहलू।
संग्रहालय में यहां पर बिताए गए गांधीजी के दिनों के फोटोग्राफ, मूर्तियां, पेटिंग, भित्तिचित्र, शिलालेख तथा स्मृति चिह्न संग्रहित हैं। गांधीजी की कुछ वैयक्तिक वस्तुएं भी यहां पर सावधानी से संरक्षित हैं।
यहां का प्रवेश द्वार ही ऐतिहासिक महत्व का है क्योंकि इसके ऊपर से ही प्रधानमंत्री जवाहरलाल ने महात्मा गांधी महाप्रयाण की घोषणा करते हुए कहा था, 'हमारे जीवन का प्रकाश चला गया और अब चारों ओर अंधेरा है।'
गांधी स्मृति के प्रवेश द्वार पर गोलाकार भूमण्डल से उभरती हुई आदमकद से बड़ी महात्मा गांधी की एक प्रतिमा, जिसके बगल में और हाथों में कबूतर पकड़े हुए एक ओर एक लड़का और दूसरी ओर एक लड़की की मूर्ति है जो गरीबों एवं विपन्न लोगों की उनकी सार्वभौमिक चिंता को प्रकट करती है, अभ्यागतों का स्वागत करती है। यह विख्यात मूर्तिकार श्री राम सुतार की कृति है। प्रस्तरमूर्ति की आधारशिला पर 'मेरा जीवन ही मेरा संदेश है' अंकित है।
राष्ट्रपिता को जिस स्थान पर गोलियों का निशाना बनाया गया था वहां पर एक बलिदान शिलाखण्ड स्थापित है जो भारत के लम्बे स्वाधीनता संग्रामी की सभी पीड़ाओं और बलिदानों का प्रतीक है। इस शिलाखण्ड के चारों ओर परिक्रमा करने के लिए पत्थरों का एक मार्ग बनाया हुआ है। शिलाखण्ड के सामने श्रद्धालुओं द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए स्थान छोड़ा गया है। शिलाखण्ड के नीचे के घास के मैदान में गुरुदेव टैगोर के शब्द हैं, 'वह प्रत्येक कुटिया की देहलीज पर रूके।'
प्रार्थना प्रांगण के मध्य में एक मण्डप है जिसकी दीवारों पर भित्तिचित्र है जो भारत की सांस्कृतिक यात्रा की निरंतरता, विश्वभर में इसके विचारों के आदान-प्रदान को प्रतिबिम्बित करते हैं और महात्मा गांधी के विश्वव्यापी व्यक्त्तित्व को अभिव्यक्त करते हैं। इन भित्तिचित्रों में उनकी विनम्रता का भी प्रतिपादन हुआ है। वह कहते थे, 'मेरी वैयक्तिक आवश्यकताओं के लिए मेरा गांव ही मेरा संसार है परंतु मेरी आध्यात्मिक आवश्यकताओं के लिए समूचा संसार मेरा गांव है।'
मण्डप के बाहर लाल रंग के पत्थर से बनी एक बेंच है जिस पर बैठकर महात्मा गांधी प्रार्थना करते थे या कठिनाई के दिनों में शांति प्रदान के लिए उनके पास आने वाले लोगों के साथ वह वार्तालाप करते थे।
हरी भरी घास प्रार्थना मैदान की विशेषता है जिसमें चारों ओर सफेद गुलाब के पौधे हैं। दाएं ओर के मैदान पर स्मारक के प्रवेश द्वार के निकट 'गांधी के सपनों का भारत' अंकित है। घुमावदार मार्ग के केंद्र में विख्यात कलाकार शंखो चौधुरी की कास्यं की एक कृति है जो गांधीजी के बलिदान पर प्रज्ज्वलित शाश्वत अग्निशिखा की प्रतीक है।
बिड़ला भवन में गांधीजी का कक्ष वैसे ही रखा गया है जैसा उनके निधन के समय था। उनकी सभी वस्तुएं, उनका , उनकी छडी, एक चाकू, कांटा और चम्मच, साबुन के स्थान पर प्रयोग किया जाने वाला खरहरा सुरक्षित है। उनका बिस्तरा था धरती पर एक चटाई, सादा सफेद ढलान लकड़ी की एक डेस्क बगल में है। वहां पर एक पुरानी काफी दिनों से पढ़ी जा रही गीता की पुस्तक भी है।
यह पूरा भवन कई भागों में विभाजित है। भवन के मुख्य प्रवेश के दोनों ओर महात्मा गांधी द्वारा रचित एक प्रार्थना 'एक सेवक की प्रार्थना' तथा उनका शाश्वत संदेश, उनके 'जंतर' प्रदर्शित हैं। बगल के एक कमरे में 'बा' और 'बापू' की दो प्रतिमाएं रखी हैं। फाइबर ग्लास से बनी प्रतिमाएं थाईलैण्ड के एक युगल श्री डेका सैसम्बून और श्रीमती सैसम्बून की बनाई हुई है।
मोहनदास करमचंद गांधी से महात्मा गांधी का बनना दक्षिण खण्ड में विवरण सहित 35 पैनलों पर श्वते-श्याम चित्रों में प्रदर्शित है। दक्षिण खण्ड में एक सभागार तथा समिति कक्ष भी है।
उत्तरी खण्ड में पांच विभिन्न कक्ष हैं। प्रथम खण्ड में वह वीथिका है जो उस कक्ष की ओर ले जाती है जहां पर गांधीजी ने अपनी शांति यात्रा और बलिदान को समर्पित जीवन के अंतिम 144 दिन बिताए थे।
उत्तरी खण्ड का तीसरा भाग 'गांधी के सपनों के भारत' तथा आनेवाली पीढि़यों द्वारा इस स्वप्न को साकार करने का गांधीजी का फार्मूला प्रदर्शित है। वह था अट्ठारह सूत्रीय कार्यक्रम। गांधीजी भारत को संसार के समक्ष वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ एक विकसित माडल के रूप में प्रदर्शित करना चाहते थे।
चौथे खण्ड सुमन में कुल 27 उपखण्ड हैं। इनमें से तीन विभितीय पटलों पर महात्मा गांधी के बाल्यकाल से लेकर उनके प्राणात्सर्ग तक के जीवन की 27 महत्वपूर्ण घटनाएं प्रदर्शित की गई हैं।
पांचवे खण्ड सन्मति में जो गांधी स्मृति का साहित्य केंद्र है, गांधीवाद तथा इससे संबंधित अनेक पुस्तकें एक स्थान पर उपलब्ध पूरा मण्डप अब एक चहलकदमी करते हुए देखने वाली वीथिका है, जो हमारे समाज के सभी अंगों और संसार के सभी भागों के कलाकारों को एक अवसर प्रदान करती है, जहां वे अपनी कृतियां प्रदर्शित कर सकते हैं और वहां आने वाले विशाल जनसमुदाय तक अपनी भावनाएं पहुंचा सकते हैं। बच्चों तथा कमजोर वर्ग के कलाकारों को विशेष अवसर प्रदान किया जाता है तथा अपनी कलाकृतियों को प्रदर्शित करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है।
गांधी स्मृति में 'स्वराज' खादी, कुटीर उद्योग तथा ग्रामीण विकास पर गांधीवादी विचारधारा को अभिव्यक्त करता है।
यहां पर एक 'स्मृतिचिह्न' पटल है जहां गांधीजी विषयक प्रतिमाएं तथा संगत कलाकृतियां प्रदर्शित हैं।
प्रख्यात सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खां द्वारा उद्घाटित 'कीर्ति मण्डप' नव-उद्घाटित मण्डप, जो गांधी स्मृति में बलिदान शिलाखण्ड के निकट स्थित है, किसी बड़े कार्यक्रम के लिए 500 जन प्रतिनिधियों के लिए स्थान उपलब्ध कराता है। प्रत्येक शुक्रवार को इस मण्डप में नियमित रूप से प्रार्थना की जाती है।
समाज के विपन्न वर्गों के बच्चों को कम्प्यूटर, सिलाई और कढ़ाई, बालकों की देखभाल और शिक्षा, सामुदायिक स्वास्थ्य, कुम्हारी, कताई और बुनाई, कठपुतली प्रदर्शन, स्वांग, संगीत तथा कहानी सुनाने आदि में कौशल प्रदान करने के प्रयास के लिए 'सृजन' नामक 'गांधी स्मृति शैक्षणिक केंद्र' की स्थापना की गई है। 'सृजन' व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को सीखने में बच्चों की सहायता करता है ताकि उनमें स्व-सहायता की भावना और आत्मविश्वास उत्पन्न हो सके और जीवनयापन में समर्थ हो सकें। इनमें से कुछ पाठ्यक्रमों को राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय द्वारा मान्यता प्रदान कर दी गई है।
हाल ही में संग्रहालय में 'शाश्वत गांधी' शीर्षक की मल्टी-मीडिया प्रदर्शनी आरम्भ की गई है, जो भवन के समूचे तल पर है। गांधी के जीवन और उनके दृष्टिकोण को साकार रूप से प्रस्तुत करने के लिए इसमें अधुनातन इलेक्ट्रानिक हार्डवेयर तथा नवीन मीडिया का उपयोग किया गया है। इसमें ऐतिहासिकता तथा व्याख्यात्मकता दोनों को प्रमुखता दी गई है। इक्कीसवीं सदी की प्रौद्योगिकी का प्रयोग करती हुई यह प्रदर्शनी गांधीवादी विचारों को उद्घाटित करती है जो उस सत्याग्रही का सत्य के सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता को स्थापित करती है।
इन सभी वस्तुओं के साथ गांधी स्मृति एक समग्र संग्रहालय का स्वरूप धारण करती है।
(ख) अंतरराष्ट्रीय गांधी अध्ययन और शांति अनुसंधान केंद्र-
दूसरा परिसर राजघाट पर महात्मा गांधी की समाधि के निकट स्थित है। छत्तीस एकड़ का यह विस्तृत परिसर महात्मा गांधी की शताब्दी के अवसर पर 1969 में अस्तित्व में आया। इस अवसर पर एक अंतरराष्ट्रीय गांधी दर्शन प्रदर्शनी आरम्भ की गई। परिसर भर में फैले छह विशाल मण्डपों में विभाजित यह केंद्र महात्मा के शाश्वत संदेश 'मेरा जीवन ही मेरा संदेश' को साकार करता है।
महात्मा गांधी के बलिदान के 31 वर्ष पश्चात् संसार ने 1969 में शताब्दी को शांति की यात्रा के रूप में मनाने का निर्णय किया। 'अंतरराष्ट्रीय गांधी दर्शन प्रर्दशनी' की स्थापना में 13 भारतीय राज्यों और 7 अन्य देशों ने सहयोग किया और अत्यंत सौम्य स्वरूप में गांधीवादी दर्शन को प्रस्तुत किया। इस प्रदर्शनी का मुख्य उद्देश्य आधुनिक विश्व और राष्ट्र के जीवन प्रमाणित करने की पृष्ठभूमि में गांधी के संदेश और सत्य अहिंसा के सिद्धांत की व्याख्या करना है।
गांधी दर्शन संग्रहालय मं सक्षिप्त विवरण के साथ दीवारों पर पुरातात्विक महत्व के सैंकड़ों चित्र प्रदर्शित हैं। गांधीजी के बाल्यकाल और युवावस्था के कुछ चित्र दुर्लभ हैं। यहां पर उस घर का एक माडल भी है जिसमें गांधीजी का जन्म हुआ था। वह सेना का वाहन संरक्षित है, जिसमें गांधीजी का पार्थिव शरीर अंतिम संस्कार के लिए राजघाट ले जाया गया था।
इनके अतिरिक्त यहां आनेवाले व्यक्ति गांधीजी के विद्यालय के रिपोर्ट कार्ड तथा तत्कालीन परिवेश में उनकी गतिविधियों विषयक समाचारों एवं काटूनों वाली समाचार पत्रों की कतरनें तथा गांधीजी और लियो टालस्टाय के बीच पत्राचार, उनकी पत्नी और माता-पिता के पोर्टेट तथा अन्य विविध आकर्षक सामग्री देख सकते हैं। एक में गांधीजी की हत्या के पश्चात् के वर्षों में विश्व के अनेक देशों द्वारा जारी किए गए डाक टिकट प्रदर्शित हैं तथा दूसरे में उनको भेजे गए पत्र प्रदर्शित हैं। इनसे पता चलता है कि उस सहज से गुजराती वकील को संसार में कितनी मान्यता प्राप्त थी। उदाहरण के लिए एक पत्र है, 'गांधीजी जहां कहीं भी वह हों' न्यूयार्क से भेजे गए एक पत्र के लिफाफे पर गांधीजी का स्केच है।
इसके संस्थापकों की धारणा थीं कि कालान्तर में गांधी दर्शन शिक्षा का एक अंतरराष्ट्रीय केंद्र बन जाएगा। 1994 में यह सपना साकार हुआ जब गांधीजी की 125वीं जयंती के अवसर पर इस परिसर को अंतरराष्ट्रीय गांधी अध्ययन एवं शांति अनुसंधान केंद्र का स्वरूप दे दिया गया। यह भारत तथा अन्य देशों के शोध कर्ताओं को मार्गदर्शन उपलब्ध कराता है। गांधी तथा संबंधित विषयों पर यह केंद्र एक स्थान पर महत्वपूर्ण सामग्री उपलब्ध करवाता है।
संस्थागत सुविधाएं-
अंतरराष्ट्रीय गांधी अध्ययन एवं शांति अनुसंधान केंद्र में उपलब्ध सुविधाएं-
1. एक पुस्तकालय एवं प्रलेखन केंद्र, जिसमें गांधीजी रचित तथा उनके विषय में 15,000 से अधिक पुस्तकें उपलब्ध हैं। यहां लगभग 50 पत्र-पत्रिकाएं मंगाई जाती हैं।
2. सभी सुविधाओं युक्त सम्मेलन, संगोष्ठी और व्याख्यान कक्ष।
3. अंतरराष्ट्रीय छात्रावास जो 25 व्यक्तियों के रहने के लिए पर्याप्त है।
4. महात्मा गांधी के विषय में फोटोग्राफों और पुस्तकों की स्थाई तथा सचल प्रदर्शनी।
5. प्रकाशन प्रभाग। पुस्तकों के अतिरिक्त यहां एक पत्रिका, एक समाचार पत्रिका तथा बच्चों का समाचार पत्र भी प्रकाशित होता है।
6. फोटो एकक।
7. प्रमुख राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय बैठकों के लिए आवासीय सुविधा।
8. संपर्क कार्यक्रमों के लिए उन्मुक्त प्रांगण।
गतिविधियां, एक दृष्टि में-
अपने तीन दशक से अधिक के अस्तित्व में, इक्कीसवीं सदी की कल्पना के साथ कदम मिलाते हुए समिति लोगों के लिए अनेक गतिविधियों तथा कार्यक्रमों की योजना बनाती रहती है जिनमें बच्चों, युवाओं और महिलाओं पर विशेष बल दिया जाता है।
उनमें से प्रमुख हैं गांधी को विद्यालयों तक ले जाना, युवा शिविर, पंचायती राज में प्रशिक्षण, वार्ता और सम्मेलन, महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम, सांप्रदायिक सदभाव के लिए प्रयास, गांधीजी के भजनों और गीतों का गायन, नियमित चरखा कताई कक्षाएं, गांधी स्वाधीनता संग्राम और राष्ट्रीय नेताओं पर फिल्में दिखलाना, संस्मरणात्मक कार्यक्रम, गांधी स्मृति व्याख्यान, शैक्षणिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों के साथ शैक्षिक कार्यक्रम।
हाल के वर्षों में समिति के कार्यों को प्रकृति का राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय आयाम मिला है। कार्यक्रम अधिक समस्या आधारित हो गये हैं और महत्वपूर्ण सामयिक समस्याओं की प्रेरणा ले रहे हैं। समिति का विस्तार भारत के विभिन्न भागों, खासकर पूर्वोत्तर, चम्पारण, पश्चिम बंगाल, जम्मू और कश्मीर में हुआ है। प्रयास यह है कि नवीनतम प्रक्रियाओं का प्रयोग करते हुए गांधीजी द्वारा कल्पित समग्र विकास के लक्ष्य की ओर आज के युवाओं को प्रेरित किया जाए।
नए उद्यमों की विशेषताओं में प्रमुख हैं विद्यालयों तथा महाविद्यालयों एवं बाहरी युवाओं, स्वयंसेवकों तथा प्रशिक्षणार्थियों को समिति के साथ जोड़ा जाए।वे अब समिति के अभिन्न अंग हैं। राष्ट्रीय इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के सहयोग से गांधीवादी विचारों पर प्रमाणपत्र तथा डिग्री पाठ्यक्रम आरम्भ किए गए हैं और सृजन के तहत कुछ व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय द्वारा मान्यता प्राप्त हो गई है।
समिति की संरचना -
शासी निकाय :
अध्यक्ष -
डॉ. मनमोहनसिंह, भारत के प्रधानमंत्री
उपाध्यक्ष-
श्रीमती तारा गांधी भट्टाचार्य
सदस्य-
श्रीमती अम्बिका सोनी , केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मत्री, संस्कृति मंत्रालय
श्रीमती आरती मेहरा, दिल्ली के महापौर
श्री तेजेन्द्र खन्ना, दिल्ली के उपराज्यपाल
श्री बी.आर. नंदा
सुश्री सुमित्रा कुलकर्णी
कुमारी निर्मला देशपांडे
श्रीमती बिमला शर्मा
श्री प्रेमचंद भाई
श्रीमती राज्यश्री बिड़ला
श्री अनिल नौरीया
आयुक्त, दिल्ली नगर निगम
अध्यक्ष/प्रशासक, नई दिल्ली न.प.
सचिव, संस्कृति मंत्रालय
सचिव, शहरी विकास मंत्रालय
सचिव (व्यय्, वित्त मंत्रालय
प्रधानमंत्री के सूचना सलाहकार
अपर महानिदेशक, के.लो.से.वि.
सदस्य सचिव-
श्री आर.सी मिश्रा, संयुक्त सचिव, संस्कृति मंत्रालय
कार्यकारी समिति :
अध्यक्ष-
श्रीमती तारा गांधी भट्टाचार्य
सदस्य-
कुमारी निर्मला देशपांडे
महानिदेशक, के.लो.से.वि.
अनिल नौरीया
सदस्य सचिव-
श्री आर.सी मिश्रा, संयुक्त सचिव, संस्कृति मंत्रालय
निदेशक-
डॉ. सविता सिंह
send details regarding "The Impact Of Panchayati Raj (Thought of Gandhiji) on Indian Society"
ReplyDelete3D Iron Man 3D 3D 3D 2D 3D 3D Game - Etienne Arts
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